"अधूरी जीत की कहानी"
अर्जुन एक सीधा-सादा लड़का था। उसने 12वीं की बोर्ड परीक्षा दिल से दी थी। सपने बड़े थे—IIT में जाना, इंजीनियर बनना, और घर वालों का सिर गर्व से ऊँचा करना। लेकिन जब रिजल्ट आया, तो वो धराशायी हो गया। उसके नंबर इतने कम थे कि उसे खुद पर शर्म आने लगी।
सारे रिश्तेदारों के ताने, दोस्तों की बातें, और सोशल मीडिया पर सबकी शानदार रैंक देखकर अर्जुन खुद को असफल मान बैठा। डिप्रेशन की गहराइयों में डूब गया। कमरे में अकेले रहना, नींद ना आना, कुछ ना खाना—जैसे उसकी जिंदगी थम सी गई थी।
एक दिन उसकी माँ उसके पास आई। कोई डांट नहीं, कोई सवाल नहीं। बस एक पुराना बक्सा लाई और बोली, "तू ये देख, शायद कुछ समझ आए।"
बक्से में अर्जुन के बचपन की चीजें थीं—पहली क्लास का सर्टिफिकेट, डांस कॉम्पिटिशन की ट्रॉफी, पेंटिंग्स, और वो छोटी सी साइंस फेयर की ट्रॉफी जिसमें उसने लाइट से चलने वाली कार बनाई थी।
माँ ने कहा,
"जिस बच्चे ने इतने कम साधनों में इतना कुछ कर लिया, क्या वो एक रिजल्ट से हार सकता है?"
उस दिन अर्जुन रोया... बहुत रोया। लेकिन पहली बार उसके आंसुओं में हार नहीं थी, उम्मीद थी।
उसने फिर से तैयारी शुरू की। खुद को वक्त दिया, सोशल मीडिया से दूरी बनाई, रोज एक छोटा लक्ष्य पूरा करने की ठानी। एक साल बाद, उसने फिर एग्जाम दिया। इस बार उसने न सिर्फ क्वालिफाई किया, बल्कि टॉप 500 में रैंक लाई।
आज अर्जुन एक सफल इंजीनियर है, लेकिन वो दिन नहीं भूला, जब वो हार मानने वाला था।
सीख:
रिजल्ट फेल नहीं करता, हमारी सोच करती है।
ज़िंदगी एक पेपर से तय नहीं होती। गिरना भी ज़रूरी है, क्योंकि जो गिरता है, वही उठता है।
अगर आज का दिन बुरा है, तो याद रखो — ये कहानी का अंत नहीं, बस एक मोड़ है।
अगर तुम भी कभी खुद को हारता महसूस करो, तो एक बात याद रखना—
"तू टूटा नहीं है, बस थोड़ा सा रुका है। और रुकने के बाद चलने वाला हर इंसान, सबसे तेज़ दौड़ता है।"